By Srashti Jyoti Agrawal
कुछ टूट फ़ूटे ख़्वाबों का कारवां किधर गया
चलती ख़िज़ां भी साथ थी एक बाग़बां जिधर गया
करता था जो ख़ुद के सजाए ख़्वाबों की रहनुमाई 
वो ख़्वाब अब ये पूछते हैं वो रहनुमा किधर गया

बस्ती थी ख़्वाबों की दुनिया वो जहां किधर गया 
ख़्वाबों के तिनकों से बना एक आशियां बिखर गया
करते थे परवाज़ एक आसमां में जो कभी
वो ख़्वाब अब ये पूछते हैं वो आसमां किधर गया

जल गए कुछ ख़्वाब जाने फिर धुआँ किधर गया
याद कर कुछ लम्हों को दिल आज फिर सिहर गया
सह गया ख़ामोशी से हर ख़्वाब का यूँ टूटना
वो ख़्वाब अब ये पूछते हैं वो बेज़ुबाँ किधर गया.


इफ़्तेख़ार अहमद

  • कारवां : यात्रियों का समूह, झुण्ड, काफिला
  • ख़िज़ां : पतझड़ की ऋतु
  • बाग़बां : माली
  • रहनुमा : ठीक रास्ता बतलाने वाला, पथ-प्रदर्शक, रस्ता बतानेवाला
  • रहनुमाई : राह दिखाने का काम, पथप्रदर्शन, रास्ता बताना
  • आशियां : घोंसला, घर
  • परवाज़ : उड़ान
  • सिहर गया: काँप गया

Cover picture credit: Srashti Jyoti Agrawal

Iftekhar Ahmad is a PhD student working under Dr. Bhupesh Taneja, having interest in protein biochemistry and structural biology. Apart from poetry, he likes playing basketball and cricket.

By Iftekhar Ahmad

Iftekhar Ahmad is a PhD student working under Dr. Bhupesh Taneja, having interest in protein biochemistry and structural biology. Apart from poetry, he likes playing basketball and cricket.

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