Photo Credits: Srishti Sharma
मेघ नभ में छाये हुए हैं। देखों कितने मस्ताये हुए हैं। दौर चल रहा हैं गर्मी का। मेघों आचरण रखो नर्मी का। पेड़-पौधें व पशु-पक्षी सब हैं प्यासे। क्यों छीनना चाहते हो उनकी सांसे। अमृत तुल्य जल तुम्हारा हैं। जिस पर टिका जीवन हमारा हैं। वार्ता करुँ मैं, प्रिय तुमसे। मत तुम दूर भागों हमसे। देखने को हूँ उतावला। टप-टप बूँदों की कहानी। हे! धाराधर बरस ऐसे। जैसे कण-कण में पानी। उमड़ उठे सावन का शोर। देखना हैं मुझे वन का मोर। एक वर्ष बीत गया। जैसे छूट कोई मीत गया। वार्ता करुँ मैं, प्रिय तुमसे। मत तुम दूर भागों हमसे। मुझे याद हैं ठंडी-ठंडी पवन का प्यार। बरसने पर लगता था तुम ही तो मेरे संसार। बचपन में भीगे वस्त्रों की भी वो यादें हैं। निचोड़ सिर पर रखने वाली भी क्या बातें हैं। बगीचे में आम लगाने की उमंग निराली थी। मेघों तुम्हारे बिना कहाँ बात बनने वाली थी। उन नन्ही कलियों का अंकुरण। मेघों की वर्षा बिना हैं अपूर्ण। वार्ता करुँ मैं, प्रिय तुमसे। मत तुम दूर भागों हमसे।
Mukesh Kumar
Mukesh Kumar is a senior research fellow at CSIR-IGIB working with Dr Binukumar B.K. He is trying to solve the conundrum of a rare genetic disorder “Wilson’s disease”. Apart from science, he likes spending time in writing, gardening, and philosophy.