Cover Picture Credit: Anurag Raj
"देखो! इस दौर की क्या हवा चली। जज्बातों की कीमत घट गयी। रिश्तों का मोल। जीवन की डगर पर, हैं खामियां अनेक। घुटन से जीने की रिवाज चली। देखो! इस दौर की क्या हवा चली। लोगों में प्रीत घट गयी। विश्वास के आसार। रिश्तों-नातों की डोर में आ गयी गांठे अनेक। दुर्गुणों की हिलोर चली। देखो! इस दौर की क्या हवा चली। दुराचारियों का जोर बढ़ गया। खून पीने वालों की प्यास। सज्जन कम हो गए दुर्जन बहुल। इंसानो की कमी हो चली। देखो! इस दौर की क्या हवा चली। एक-दूसरे से घृणा बढ़ गयी। आपस में दूरियां। तेरा-मेरा करने वाले हो गए अगाध। आत्मीयता की कमी हो चली। देखो! इस दौर की क्या हवा चली।" दौर -युग डगर -मार्ग खामियां -दोष घुटन -घबराहट/दम घुटने की अवस्था आसार -संकेत हिलोर -लहर बहुल -अधिक अगाध -बहुत आत्मीयता -अपनत्व
Mukesh Kumar
Mukesh Kumar is a senior research fellow at CSIR-IGIB working with Dr Binukumar B.K. He is trying to solve the conundrum of a rare genetic disorder “Wilson’s disease”. Apart from science, he likes spending time in writing, gardening, and philosophy.